गर (translated from IF by Rudyard Kipling)

 


              गर



गर सब मदहोश हों पर होश में होने का तुम पर दोष हो


हर तरफ पागलपन हो, फिर भी निश्चल तुम्हारा मन हो


चाहे सब के दिल में शक हो, जो जाती तुम्हारे तलक हो


अंदर विश्वास का मंदिर हो, संदेह का अतिथि घर हो


गर तुम प्रतीक्षा कर सकते हो, इस परीक्षा से न थकते हो


मिथ्याचार का प्रहार हो, पर मिथ्यावुत्ति का न सहारा लो 


हर नजर में ज़हर बेहद हो, पर तुम्हारी नज़र में शहद हो


फिर भी महान न लगो लोचन में, न ज्ञानी वाणी वचन में


गर सपने देखना पसंद हो, पर सपनों के पिंजरे में न बंद हो


अगर तुम सोचते हो, पर तुम सोच को न खोजते हो


चाहे हार हो जीत हो, दोनों से समान रिश्ता और रीत हो


किसी का हो आना, दोनों बहरूपियों को पूरा अपनाना


अगर सच कह सकते हो और उसको सह सकते हो


जब उसे सुनोगे मरोड़ा हुआ, मूर्खों के लिए छोड़ा हुआ


बरबाद हो जाए गर काम, जिसको दिया हो तुम ने अंजाम


समेटो टुकड़े फिर एक बार, शुरू से, लेके टूटे औज़ार


अपनी ख्याति कीर्ती नाम सब झोंक दो तमाम


एक ढेर एक दाव पे, एक सिक्के के चुनाव पे


और हार जाओ पूरी बाज़ी, फिर भी लौटने को हो राज़ी


प्रथम पदचिन्ह पे फिर कदम भरो, उफ तक न करो


कितनी भी देर से आए बारी, गर निभाव तुम सारी


तन से, मन से, निष्ठा से, लगन से


गर खालीपन खाए, अपने अंदर कुछ न पाए


बस एक संकल्प के डटे रहो तुम बल पे


अगर बीच में गणों के, रख सको गुणोँ को


गर शासक के साथ हो के भी सादगी न खो दो


दुशमन हो या दोस्त, तुम्हे कोई न दे सके चोट


गर सबका मान हो, तुम्हारे लिए सब समान हो


अगर निर्मम निर्दय सतत इस समय


का हर पल हर क्षण को दो तुम बल-बल का प्रण


जल थल नभ, तुम्हारा हो जाएगा सब


और इस के अलावा तुम बन जाओगे एक मानव

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